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सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- पुनर्वास योजना में दिए जाने वाले फ्लैट की कीमत 3.77 लाख क्यों?
सुप्रीम कोर्ट ने फरीदाबाद के खोरी गांव में वनक्षेत्र से विस्थापित हुए लोगों को पुनर्वास योजना के तहत दिए जाने वाले फ्लैट की कीमत 377500 रुपये तय किये जाने पर शुक्रवार को सवाल उठाया। पात्र परिवारों के चयन को लेकर शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि ‘आधार कार्ड’ का इस्तेमाल सिर्फ व्यक्ति के पहचान के लिए किया जा सकता है, इसे आवासीय प्रमाण का दस्तावेज नहीं माना जाएगा।
जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने फरीदाबाद निगम से पूछा, खोरी वन क्षेत्र से विस्थापित हुए लोगों को पुनर्वास योजना के तहत दिए जाने वाले फ्लैट्स की कीमत 377500 रुपए क्यों हैं?
जब वास्तव में यह प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बनाए गए फ्लैट हैं तो इनकी कीमत अलग क्यों होनी चाहिए? इस पर फरीदाबाद नगर निगम के वकील अरुण भारद्वाज ने पीठ से कहा, वह इस संबंध में विस्तृत जानकारी सोमवार को अदालत को मुहैया करा देंगे। इस पर पीठ ने कहा, सोमवार को ही इस संबंध में आदेश पारित किया जाएगा।
पीठ ने स्पष्ट किया कि आधार कार्ड को सिर्फ व्यक्ति के पहचान के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, इसे आवासीय प्रमाण नहीं माना जा सकता। इसके लिए अन्य दस्तावेज पेश करने होंगे और अथॉरिटी द्वारा उस दस्तावेज की जांच की जाएगी। दरअसल भरद्वाज ने दलील दी थी कि आधार को आवासीय प्रमाण नहीं माना जाना चाहिए।
लोगों को यह प्रमाणित करने के लिए कि वह खोरी गांव में रहते थे, कोई अन्य दस्तावेज पेश करना जरूरी है। आधार कार्ड धारकों को पुनर्वास योजना के तहत आवेदन की इजाजत देने से इनकी संख्या में भारी बढ़ोतरी हुई है। उन्होंने कहा, जहां पहले फ्लैट अधिक थे और आवेदन कम थे। अब स्थिति बिल्कुल उलट हो गई है। यही नहीं आवेदन की तारीख बढ़ाने की भी बार बार मांग की जा रही है।
विस्थापित हुए लोगों की ओर से पेश एक वकील ने कहा, बैंक के पासबुक को भी आवासीय प्रमाण माना जाना चाहिए। लेकिन पीठ ने इस मांग को दरकिनार कर दिया। यह भी मांग की गई कि खोरी वन क्षेत्र में जो लोग व्यावसायिक गतिविधियां चला रहे थे उन्हें भी पुनर्वास योजना के तहत लाभ मिलना चाहिए लेकिन पीठ ने इस मांग को भी नकार दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने सात जून को फरीदाबाद नगर निगम को खोरी गांव के वन क्षेत्र में स्थित करीब 10 हजार घरों को छह हफ्ते के भीतर ढहाने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि वनक्षेत्र में अतिक्रमण का किसी को अधिकार नहीं। हर हालत में वन क्षेत्र खाली होना चाहिए और इसमें किसी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता।