लद्दाख में महिलाओं की टीम चलाती है ये एलपीजी प्लांट, भारतीय सेना भी है इसपर निर्भर
शेरिंग एंग्मों हर सुबह अपने दो साल के बेटे को पड़ोसी के यहां छोड़ कर, अपने घर चोगलामसर से 20 किलोमीटर दूर बर्फ से जमे हुए रास्तों को पार करते हुए लद्दाख के एकमात्र एलपीजी बॉटलिंग प्लांट में पहुंचती हैं। एंग्मों उस 12 सदस्यीय महिला टीम का हिस्सा हैं, जो यह सुनिश्चित करती है कि आर्कटिक के तापमान में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सामने खड़े हमारे भारतीय सेना के 50 हजार जवानों को खाली पेट मार्च न करना पड़े।
इस प्लांट को इंडियन ऑयल द्वारा बनाया गया है और यह बर्फ के कारण सड़कों की कनेक्टिविटी बंद हो जाने के बाद लद्दाख में कुकिंग गैस का एक मात्र स्रोत है। प्लांट में बनने वाली रिफिल का लगभग 40 फीसदी भारतीय सेना को जाता है। यह महिलाओं द्वारा संचालित की जाने वाली देश की एकमात्र एलपीजी इकाई है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, इस प्लांट में महिलाएं ही प्रोडक्शन लाइन, सील की गुणवत्ता आदि की जांच और सुरक्षा का प्रबंधन करती हैं। सुरक्षा अधिकारी शेरिंग एंग्मों को छोड़कर टीम के सभी सदस्य संविदा कर्मचारी हैं। यहां पुरुष केवल भारी सामान की लोडिंग करते हैं। एंग्मों ने बताया कि मैं सुबह जल्दी उठती हूं क्योंकि मुझे यहां आने से पहले अपने बेटे को तैयार करना पड़ता है। मैं बस नहीं छोड़ सकती क्योंकि प्लांट पर सुबह नौ बजे से काम शुरू हो जाता है। यदि मुझसे बस छूट गई तो प्लांट तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है।
वहीं इंडियन ऑयल प्लांट के प्रभारी सुजॉय चौधरी ने कहा कि महिलाएं जिस आसानी के साथ हमारे एलपीजी प्लांट में इतनी ठंड में काम करती हैं, यह महिला शक्ति का उदाहरण है। इसी तरह प्लांट में काम करने वाली रिगजिन लाडो के लिए रास्ता काफी लंबा है और वे 35 किलोमीटर दूर कारू में रहती है। लेकिन उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
लाडो कहती हैं कि यहां काम शुरू करने से पहले मुझे ये नहीं पता था कि सिलिंडर में रेगयुलेटर कैसे लगता है। मगर अब मैं बाहर जाने वाली हर रीफिल के लिए जिम्मेदार हूं। ये देश और सेना के लिए मेरा छोटा सा योगदान है। वहीं चोगलामसर में ही रहने वाली पद्मा तोग्याल कहती हैं कि उनकी टीम सेना के लिए जाने वाली रीफिल को दो बार चेक करती है। उन्होंने बताया कि अब उनका परिवार भी एलपीजी सिलिंडरों की सराहना करता है क्योंकि उन्हें इसे तैयार करने में लगने वाली मेहनत का अंदाजा है।
सुरक्षा अधिकारी एंग्मों को लगता है कि महिला कर्मचारी सुरक्षा को लेकर ज्यादा सावधान रहती हैं और कड़ी मेनत करती हैं। इस वजह से स्वास्थ्य, सुरक्षा और पर्यावरण (एचएसई) मापदंडों का प्रबंधन करना आसान हो जाता है।